सोने-चाँदी के वर्क का उपयोग कभी आयुर्वेद और यूनानी दवाओं व नवाबों के विशेष हकीम उनके लिए भस्म बनाने में प्रयोग करते थे लेकिन आज कल सोना-चाँदी युक्त च्यवनप्राश वे मिठाइयों पर लगे वर्क आम लोगों की सेहत से खिलवाड़ ही कर रहे हैं या यूँ कहिए कि सरेआम वर्ग के नाम पर ज़हर ही बाँटा जा रहा है।

fake silver work sweets :
प्राचीन काल में शुक्रवार को बनाने वाले पुश्तैनी कारीगरों के दिन तो पूरी तरह से लद चुके हैं वर्ग बनाने का कारोबार मशीनों से होने लगा है जिसमें शुद्ध चाँदी में आसानी से मिलावट की जा रही है। भारतीय विश्व विज्ञान अनुसंधान के खाद्य एवं विषाक्तता जाँच प्रयोगशाला में इन वर्गों की जाँच के बाद चौंकाने वाले तथ्य सामने आ चुके हैं कि आज जिस सोने-चाँदी के वर्क का प्रचलन मिठाइयों या अन्य पदार्थों में किया जा रहा है वह पूरी तरह से सेहत का साथी नहीं है।

साढ़े आठ सो वर्ष पूर्व सोने-चाँदी के वर्क का प्रयोग विशेष रूप से पान, हलवा व तम्बाकू तथा विभिन्न व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाने लगा था। उस वक़्त वर्क हाथों से हथौड़े से पीट पीटकर बनाए जाते थे। सोने-चाँदी के टुकड़ों को जानवर की खाल में रखकर कूटा जाता था । खाल की झिल्ली उतार कर उसे साफ़ कर जाफ़रान, लोंग, इलायची इत्यादि ढेरों मसालों का मिश्रण बना घोल डालकर सुखाया जाता था। इसी से महक और स्वाद बढ़ता था चाहे वे मिठाइयां हो अथवा व्यंजन।
आज मिलावट के इस युग में वर्ग की विश्वसनीयता पर भी आँच आ गयी है और ये पूरी तरह से नक़ली वर्क के रूप में धड़ल्ले से प्रयोग में लाए जा रहे हैं चाँदी के वर्क का सर्वाधिक प्रचलन होने से इसमें सबसे ज़्यादा विषैले तत्व पाए गए हैं जिनमें केडियम, मैंगनीज, एल्युमीनियम, निकल, लेड आदि शरीर के लिए घातक माने गए हैं और ख़तरनाक बीमारियां होने का ख़तरा बढ़ गया है।
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कैडियम का सीधा असर किडनी पर पड़ता है जिससे गुर्दे क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, एल्यूमिनियम नामक धातु के मिश्रण से न्यूरोलॉजिकल बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है, चाँदी के वर्क में लेड मिलाई जाती है जिससे कैंसर जैसी घातक बीमारी फैलती है साथ ही यह स्मरण शक्ति को भी प्रभावित करती है जिससे पागलपन का ख़तरा भी हो सकता है।
बच्चे रंगीन व वर्क लगी मिठाइयों के प्रति आकर्षित होते हैं लेकिन उन्हें मालूम नहीं है कि मिठाइयों में प्रयोग किए जाने वाले लाल, पीले, हरे, रंग भी कितने घातक है।
शुद्ध चाँदी से बने वर्क में एंटी माइक्रो एजेंट रहते हैं जो हमें कई बीमारियों से बचाते भी है। हमारे देश में चाँदी के वर्क का सेवन सर्वाधिक मिठाइयों विभिन्न पकवानों, व माउथ फ्रेशनर के रूप में मिली मीठी सुपारी, सोंप, इलायची तम्बाकू व मुरब्बों में तथा विशेष अवसरों पर पान चाँदी के वर्क में लपेटकर खाया जाता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार खानपान एवं पाक संबंधी उपयोगी है तो देश में प्रतिवर्ष तीन लाख किलो चाँदी से वर्क बनाए जाते हैं लेकिन प्रशन यही उठता है की इसमें कितने प्रतिशत शुद्ध चाँदी के वर्क बनते हैं, शुद्ध असली वर्क वही है जो हाथ में रखने से ग़ायब हो जाए अन्यथा बीमारियों का वर्क तो प्रयोग में ला ही रहे हैं।